जय श्रीमन्नारायण
योगिनी एकादशी दिनांक 24 जून शुक्रवार को आषाढ़ मास कृष्ण पक्ष की योगिनी एकादशी है।
धर्मराज युधिष्ठिर ने पूछा हे वासुदेव आषाढ़ के कृष्ण पक्ष में जो एकादशी होती है उसका क्या नाम है कृपया उसका वर्णन कीजिए ।
भगवान श्रीकृष्ण बोले हे नृप श्रेष्ठ आषाढ़ के कृष्ण पक्ष की एकादशी का नाम योगिनी है। यह बड़े-बड़े पापो का नाश करने वाली है ।संसार सागर में डूबे हुए प्राणियों के लिए यह सनातन नौका के समान है ।तीनों लोकों में यह सारभूत व्रत है ।
अलकापुरी में राजाधिराज कुबेर रहते हैं ।वह सदा भगवान शिव की भक्ति में तत्पर रहने वाले हैं ।उनके हेममाली नाम वाला एक सेवक था वह पूजा के लिए फूल लाया करता था। हेममाली की पत्नी बड़ी सुंदरी थी जिसका नाम विशालाक्षी था। वह यज्ञ काम पास में आबद्ध होकर सदा अपने पत्नी में आसक्त रहता था।
एक दिन की बात है वह हिमालय मानसरोवर से फूल लाकर अपने घर में ही ठहर गया और पत्नी के प्रेम का रसास्वादन करने लगा। कुबेर के भवन ना जा सका ।उधर पूजा का समय व्यतीत हो गया। यक्षराज कुबेर क्रोध मे स्थित होकर सेवकों से पूछा हे दुरात्मा हेममाली क्यों नहीं आ रहा है?यक्षो ने कहा राजन वह पत्नी के काम पास में आसक्त हो कर रमण कर रहा है।
उनकी बात सुनकर के वह रोष में भर गए और जब हेममाली आया तो उन्होंने कहा हे पापी, हे दुष्ट, दुराचारी तूने भगवान की अवहेलना की है। अतः कोढ से युक्त अपनी प्रियतमा से मुक्त होकर इस स्थान से भ्रष्ट हो कर अन्यत्र चला जा।
कुबेर के ऐसा कहने पर वह उस स्थान से नीचे गिर गया। उसका शरीर पूरा कोढ से पीड़ित हो गया। परंतु शिव पूजा के प्रभाव के कारण वह पर्वतों में श्रेष्ठ मेरू के शिखर पर पहुंच गया।
वहां पर तपस्या के पुत्र मुनिवर मार्कंडेय जी का दर्शन हुआ । दूर से ही उनके चरणों में प्रणाम किया और कांपता हुआ बोला प्रभु दया कीजिए। मुनिवर मार्कंडेय ने कहा तुझे कोढ के रोग ने कैसे दबा लिया है ,तू क्यों इतना अधिक निंदनीय जान पड़ता है? वह बोला है मैं कुबेर का सेवक हूं। मेरा नाम हेममाली है और उसने पूरी व्यथा-कथा अपनी सुना दिया। मुनिश्रेष्ठ इस समय किसी शुभ कर्म के प्रभाव से मैं आपके निकट आ पहुंचा हूं संतों का चित्त सदा भावना परोपकार में लगा रहता है। यह जानकर मुझ अपराधी को कर्तव्य का उपदेश दीजिए।
मार्कंडेय जी कहते हैं तुमने यहां सच्ची बात बताया है ,असत्य भाषण नहीं किया है ।इसलिए मैं तुम्हें कल्याणप्रद उपदेश करता हूं। तुम आषाढ़ के कृष्ण पक्ष में योगिनी एकादशी का व्रत करो इस व्रत के पुण्य से तुम्हारी कोढ निश्चय दूर हो जाएगी ।
भगवान श्री कृष्ण कहते हैं। ऋषि के वचन सुनकर हेममाली दंड की भाँति उनके चरणों में साष्टांग प्रणाम किया। उन्होंने उसे उठाया उसको बड़ा हर्ष हुआ ।
मारकंडेय जी के उपदेश से उसने योगिनी एकादशी का व्रत किया जिससे शरीर से कोढ दूर हो गई । योगिनी का व्रत ऐसा ही बताया गया है। जो 88000 ब्राह्मणों को भोजन कराता है उसके समान ही फल उस मनुष्य को भी मिलता है जो योगिनी एकादशी का व्रत करता है। योगिनी महान पापों को शांत करने वाली और महान पुण्य फल देने वाली है ।इसके पढ़ने और सुनने से मनुष्य सब पापों से मुक्त हो जाता है ।
ओम प्रकाश पांडे अनिरुद्ध रामानुज दास संत रामानुज मार्ग शिव जी पुरम प्रतापगढ़
कृपा पात्र श्री श्री 1008 स्वामी श्री इंदिरा रमणाचार्य पीठाधीश्वर श्री जीयर स्वामी मठ जगन्नाथपुरी एवं पीठाधीश्वर श्री नैमिषनाथ भगवान रामानुज कोट अष्टम भू वैकुंठ नैमिषारण्य
नोट:– पारणा 25 जून दिन शनिवार प्रातः 7:54 तक
हमारे संवाददाता श्रीवास्तव प्रतापगढ़
