झारखंड में जैन तीर्थ सम्मेद शिखर को टूरिस्ट प्लेस बनाए जाने का विरोध कर रहे जैन मुनि सुज्ञेयसागर ने जयपुर में मंगलवार को प्राण त्याग दिए। वे झारखंड सरकार के फैसले के खिलाफ पिछले 09 दिन से आमरण अनशन कर रहे थे।

 

सम्मेद शिखर तीर्थ है, पर्यटन स्थल नही।

 

राष्ट्रीय राजमार्ग 2 पर बरही से धनबाद के बीच में एक जगह है डुमरी से लगभग 10 किलोमीटर बाद,, जो कि पारसनाथ की पहाड़ियों में स्थित है और यहाँ मुख्य मार्ग से लगभग 10 किलोमीटर की दूरी पर पहाड़ो और जंगलों के बीच जैन धर्म का पवित्र तीर्थस्थल है सम्मेद शिखर जी। सारा मामला इसी जगह का है।

 

सभ्यता कुछ और नही इवॉल्व होने की कहानी है, हमारी सभ्यता कैसी है यह इस बात पर निर्भर करता है कि हम कितने परिष्कृत हुए हैं। हमारा धर्म हमें परिष्कृत करता है, दूसरे शब्दों में हमारा धर्म कैसा है इस बात पर हमारीपाप सभ्यता बनती है।

 

जैन धर्म एवोल्यूशन के उच्चकोटि पर खड़ा है, दूसरे जीवों के प्रति सह-अस्तित्व और अभयता के साथ। सम्मेद शिखर इस बात का प्रमाण है। हर जैनी उसी शिखर को देखकर मनुष्यता के गुण को दृढ़ता से धारण करने का बल प्राप्त करता है। सम्मेद शिखर पहाड़ रूपी गंगा है जिसमें डुबकी लगाकर मोक्ष की प्राप्ति हो जाती है।

 

जैन धर्म के 24 तीर्थंकरों में से 20 के मोक्ष प्राप्त करने के साक्षी होने का गौरव सम्मेद शिखर के पुण्य स्थान को प्राप्त है। ऐसे तीर्थ को पर्यटन स्थान घोषित कर वहां फाइव स्टार होटल बनाना, मद्य मांस की दुकानें खुलवाना राज्य सरकार की गंदी नियति से काम करना दिखाता है।

 

जैन हिंदू हैं, हिंदू जैन हैं। यदि झारखंड की सरकार सोचती है कि थोड़ी संख्या में जैन क्या प्रतिरोध कर लेंगे तो वह गलत है, 100 करोड़ से ज्यादा की संख्या है। यदि सम्मेद शिखर से छेड़ छाड़ बन्द नही हुई तो महावीर बजरंगी आएंगे।

 

सम्मेद शिखर एक पुण्य भूमि है जहाँ पर निर्माण केवल जैन एथिक्स के आधार पर ही होना चाहिए। जब जैन समाज वहाँ इस तरह की सुविधाएं नहीं चाहता, उन्हें नहीं चाहिए यह सुविधा.. तो जबर्दस्ती उनकी आस्थाओं पर चोट करने की क्या जरूरत है।

 

झारखंड सरकार अपनी योजनाएं वापस ले।